Yaksha Prashna: The Ultimate Test of Dharma Faced by Yudhishthira: यक्ष प्रश्न : युधिष्ठिर की धर्म पर परीक्षा – एक प्रेरणादायक प्रसंग

 

Yudhishthira answers Yaksha in forest with his brothers unconscious near lake Mahabharata scene

यक्ष प्रश्न : जब धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्म की कठिन परीक्षा उत्तीर्ण की

प्रस्तावना

महाभारत केवल युद्ध की कथा नहीं है, यह धर्म, नीति, विवेक और नेतृत्व की महान पाठशाला है। इसमें एक ऐसा प्रसंग आता है, जो न तो युद्धभूमि में है और न ही अस्त्र-शस्त्र से जुड़ा है, किंतु यह प्रसंग युधिष्ठिर की धर्मनिष्ठा, तर्कशक्ति और न्यायप्रियता की परीक्षा का श्रेष्ठ उदाहरण है। यही है – यक्ष प्रश्न का प्रसंग

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झील के पास रहस्य

वनवास के अंतिम काल में जब पांडव अज्ञातवास की तैयारी कर रहे थे, उन्हें एक दिन पानी की आवश्यकता हुई। नकुल एक झील पर पानी लेने गया और लौटकर नहीं आया। फिर सहदेव, अर्जुन और भीम भी गए, परंतु सभी मूर्छित होकर वहीं गिर पड़े।

युधिष्ठिर चिंतित हुए और स्वयं झील की ओर प्रस्थान किए। वहां उन्होंने अपने सभी भाइयों को अचेत अवस्था में देखा। तभी एक दिव्य स्वर गूंजा –

“मैं इस जल का स्वामी यक्ष हूं। मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना जिसने जल पिया, वह मृत्यु का वरण कर चुका है।”

यक्ष प्रश्न और युधिष्ठिर के उत्तर

यक्ष ने युधिष्ठिर से गूढ़ प्रश्न पूछने आरंभ किए। कुल 58 प्रश्नों में जीवन, मृत्यु, धर्म, नीति, सत्य, आश्चर्य, संतोष, सुख-दुख आदि विषयों को समाहित किया गया।

कुछ प्रमुख प्रश्न और उत्तर:

  • प्रश्न: मनुष्य का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
    उत्तर: प्रतिदिन मनुष्य मृत्यु को जाता देखता है, फिर भी यही सोचता है कि वह कभी नहीं मरेगा – यही सबसे बड़ा आश्चर्य है।
  • प्रश्न: कौन-सा धर्म सबसे श्रेष्ठ है?
    उत्तर: अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है।
  • प्रश्न: जीवन का सबसे बड़ा धन क्या है?
    उत्तर: संतोष ही सबसे बड़ा धन है।
  • प्रश्न: मनुष्य का सच्चा मित्र कौन है?
    उत्तर: ज्ञान ही मनुष्य का सच्चा मित्र है।

इन उत्तरों से यक्ष अत्यंत प्रसन्न हुआ।

न्याय की परीक्षा – युधिष्ठिर ने क्यों चुना नकुल को?

यक्ष ने कहा – "तुम्हें अपने किसी एक भाई को पुनः जीवित करने का वरदान है।"

प्रत्याशा के विपरीत, युधिष्ठिर ने अर्जुन या भीम को नहीं, नकुल को जीवित करने का अनुरोध किया। उन्होंने स्पष्ट कहा – “मैं कुंतीपुत्र हूं और जीवित हूं। माद्री के भी दो पुत्र थे – सहदेव और नकुल। न्याय यही है कि माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे।”

यक्ष ने यह सुनकर कहा – “तुम धर्मपुत्र हो। मैं स्वयं यमराज हूं – तुम्हारा पिता। आज मैंने तुम्हारी धर्मनिष्ठा की परीक्षा ली है। मैं सभी पांडवों को जीवनदान देता हूं।”

इस प्रसंग की आज के युग में प्रासंगिकता

  • नेतृत्व में निष्पक्षता और तटस्थता अत्यंत आवश्यक गुण हैं।
  • धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण और तर्कयुक्त निर्णय है।
  • जीवन के प्रश्नों का उत्तर केवल शक्ति से नहीं, विवेक और सत्य से दिया जाना चाहिए।
  • संतोष, संयम और सत्य आज भी वही महत्व रखते हैं जो महाभारत काल में थे।

निष्कर्ष

यक्ष प्रश्न केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन के मूल्यों और आदर्शों का जीवंत चित्रण है। युधिष्ठिर ने दिखाया कि सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलना कठिन अवश्य है, परंतु अंततः वही मार्ग शांति, प्रतिष्ठा और विजय की ओर ले जाता है।

Yudhishthira answers Yaksha in forest with his brothers unconscious near lake Mahabharata scene


शुभवाक्य

"जहाँ न्याय हो, वहाँ धर्म स्वयं उपस्थित होता है।"
"In the presence of justice, Dharma reveals itself."
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