The Vanishing Train: Mystery Novel Intro & Chapters 1-2 Continued

Blue luxury train vanishing into a misty Himalayan tunnel under starry sky – Hindi mystery novel cover art

कहानी का संक्षिप्त विवरण:

The Vanishing Train : लापता ट्रेन एक रहस्यमयी यात्रा है —

जहाँ एक लग्ज़री शताब्दी एक्सप्रेस, सैकड़ों यात्रियों समेत दो स्टेशनों के बीच गायब हो जाती है

जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ती है, सामने आते हैं ऐसे रहस्य —
जो केवल तकनीकी नहीं, बल्कि चेतना, प्रकृति, और मानव स्वतंत्रता से जुड़े हैं।

मुख्य पात्र अयान एक जिद्दी पत्रकार है, जो इस रहस्य को उजागर करते हुए न केवल ट्रेन, बल्कि स्वयं को भी खोजता है।
साथ मिलते हैं उसे – एक वैज्ञानिक, एक छोटी लड़की, और एक विचारशील सैनिक।

यह कहानी केवल एक ट्रेन की नहीं है —
बल्कि एक पूरी सभ्यता की दिशा की है।
कहीं यह विज्ञान की विजय है…
या चेतना का पुनर्जागरण?

एक अनदेखी दुनिया का द्वार खुलता है…
जहाँ सवाल उठते हैं:
क्या हम सच में स्वतंत्र हैं?
या बस तयशुदा रास्तों पर चल रही एक ट्रेन का हिस्सा?

***


अध्याय 1: शून्य में समाई ट्रेन

स्थान: शिमला एक्सप्रेस, हिमालयन रूट
समय: रात 11:15 बजे

शिमला एक्सप्रेस एक लग्ज़री ट्रेन थी—बिजली से सजी डाइनिंग कार, आलीशान केबिन, और सुरक्षा के सख़्त इंतज़ाम। यह ट्रेन दिल्ली से शिमला के बीच चलती थी, और अक्सर इसे "पहाड़ों की रानी" कहा जाता था।

31 दिसंबर की रात थी। सर्द हवाओं ने दिल्ली को अपनी जकड़ में ले रखा था। ट्रेन में नए साल के जश्न की तैयारियां ज़ोरों पर थीं। शराब, संगीत और रज़ाईयों की गर्माहट से हर डिब्बा गुलज़ार था।

लेकिन उस रात कुछ अलग होने वाला था।

रात 11:40 बजे—ट्रेन कालका स्टेशन पार कर चुकी थी। स्टेशन मास्टर ने "नॉरमल क्लियरेंस" का सिग्नल दे दिया था।

लेकिन जैसे ही ट्रेन "टिंबर ट्रेल सुरंग" में दाखिल हुई, कुछ मिनटों बाद सिग्नलिंग सिस्टम ने स्टेशन को यह दर्शाया—"No train on track."

स्टेशन मास्टर अवाक रह गया। उसने दोबारा रिले सिस्टम चेक किया—कोई गड़बड़ी नहीं थी। रडार और GPS भी ट्रेन को "नॉट डिटेक्टेड" बता रहे थे।

ट्रेन लापता हो चुकी थी।

अगले दिन सुबह
समाचार चैनलों पर एक ही खबर थी—
“शिमला एक्सप्रेस गायब, 134 यात्री लापता”
“देश की सबसे सुरक्षित ट्रेन रहस्यमयी तरीके से ग़ायब”

सरकार ने तुरंत जांच के आदेश दिए।
और तब एंट्री होती है—जासूस अयान तिवारी की।

अयान तिवारी, एक शांत, सौम्य लेकिन तीव्र बुद्धिमत्ता वाला जासूस, जो पहले भी कई नामुमकिन मामलों को हल कर चुका था। उसे इस केस की कमान सौंपी गई।

अयान जब घटनास्थल पर पहुँचा, तो उसने सबसे पहले टिंबर ट्रेल सुरंग को जांचा। सुरंग पुरानी थी, लेकिन मजबूत थी। कोई विस्फोट या दरार का निशान नहीं था।

उसने सबसे पहले स्टेशन मास्टर से बात की।

“क्या आपने ट्रेन को सुरंग में जाते देखा था?”
“हाँ सर, आखिरी बोगी तक साफ़ दिख रही थी। लेकिन...उसके बाद... कुछ भी नहीं।”

अयान को शक हुआ—क्या यह कोई हाई-टेक डकैती है? आतंकवादी हमला? या कोई विज्ञान से परे रहस्य?

उसने रेलवे कंट्रोल रूम से ट्रेन का पिछला रिकॉर्ड मंगवाया। आखिरी बार CCTV फुटेज में देखा गया कि ट्रेन सुरंग में दाखिल हो रही है। लेकिन फिर...स्क्रीन ब्लैंक हो गई।

कोई गड़बड़ी नहीं, कोई स्पार्क नहीं, कोई धमाका नहीं—बस एक ब्लैकआउट।

ट्रेन ने जैसे अस्तित्व ही छोड़ दिया हो।

सवाल खड़े हुए:

  1. ट्रेन सुरंग में दाखिल हुई, लेकिन निकली क्यों नहीं?

  2. क्या सुरंग के भीतर कोई गुप्त रास्ता है?

  3. 134 लोगों के फोन सिग्नल क्यों एक साथ बंद हो गए?

अयान ने सुरंग में घुसकर खुद जांच शुरू की। रात के 2 बजे, वो टॉर्च और ड्रोन कैमरे के साथ सुरंग के भीतर गया।

वहाँ उसने दीवारों पर कुछ अजीब निशान देखे—जैसे कि कोई प्राचीन लिपि।

संकेत? संयोग? या कोई रहस्य?

अयान को सुरंग के अंत में एक बेहद पुराना, जंग लगा दरवाज़ा मिलता है, जो किसी ने सालों से नहीं खोला।

और जैसे ही वह उस दरवाज़े की ओर बढ़ता है, दीवार पर एक छाया चलती है—किसी अजनबी की।

कहानी की गहराई अब शुरू होती है।

अध्याय 2: सुरंग का रहस्य

स्थान: टिंबर ट्रेल सुरंग, हिमालय की तलहटी
समय: रात 2:15 बजे

अयान तिवारी के हाथ में टॉर्च थी, और उसकी आँखें उस पुराने, ज़ंग लगे दरवाज़े पर टिकी थीं। सुरंग में सन्नाटा था—सिर्फ उसके कदमों की आवाज़ गूंज रही थी।

दीवार पर कुछ लिपियाँ थीं—देवनागरी से मिलती-जुलती, पर कोई ऐसी भाषा जो आज की दुनिया में नहीं बोली जाती। ये निशान समय के थपेड़ों से थोड़े मिट चुके थे, लेकिन उनके पीछे छिपी कोई कहानी ज़रूर थी।

"क्या ये सिर्फ कला है... या कोई चेतावनी?" अयान ने खुद से पूछा।

वो दरवाज़ा बिना किसी हैंडल के था—सिर्फ एक धातु की पट्टी, जिस पर एक त्रिभुज आकृति उभरी हुई थी। जैसे ही अयान ने उस पर हाथ रखा, दीवार अचानक से कांपने लगी।

गड़गड़ाहट... और फिर एक हल्की सी ‘क्लिक’ की आवाज़।

दरवाज़ा थोड़ी-थोड़ी सी खुलने लगा। पीछे थी—एक और सुरंग। लेकिन ये सुरंग रेलवे के नक्शों में कहीं दर्ज नहीं थी।

दृश्य बदलता है:

स्थान: गुप्त सुरंग, अज्ञात स्थान
समय: रात 2:30 बजे

अयान उस सुरंग में दाखिल हुआ। यहाँ हवा में नमी थी, दीवारों पर पुरानी मशालों के अवशेष, और जमीन पर लोहे की पटरियाँ, जो रेलवे जैसी लगती थीं, पर पुरानी और जर्जर।

कुछ दूरी पर जाकर उसे एक पड़ी हुई बैग दिखी—एक महिला यात्री की। अयान ने उसे खोला—अंदर था एक मोबाइल, एक डायरी, और कुछ आधे टूटे हुए चॉकलेट्स।

डायरी में लिखा था:

“31 दिसंबर, रात 11:50
ट्रेन रुक गई है। सुरंग के अंदर अचानक अंधेरा हो गया। मोबाइल नेटवर्क चला गया है। लोग डरे हुए हैं। बाहर कुछ हलचल है—जैसे कोई चल रहा हो… लेकिन ट्रेन के बाहर कौन हो सकता है?”

अयान की रूह कांप गई। वो जानता था, ये मामला किसी साधारण हादसे का नहीं है।

उसी समय, दूसरी ओर...

दिल्ली में रेलवे कंट्रोल रूम में एक वरिष्ठ अधिकारी को एक अनजान नंबर से कॉल आता है:

“अगर अगली ट्रेन निकली... तो वो भी लौटकर नहीं आएगी।
रोक सको तो रोक लो।”

कॉल ट्रेस नहीं हो पाया—स्थान अज्ञात।

फिर लौटते हैं सुरंग में:

अयान ने उस गुप्त सुरंग का एक और द्वार खोला—यह दरवाज़ा कहीं एक खाली, बड़े से हॉल में खुलता था, जहां पुरानी रेल की बोगियाँ खड़ी थीं।

पर ये बोगियाँ नई थीं—उनपर पेंट तक नहीं उड़ा था।

"क्या ये वही ट्रेन है जो लापता हुई?"

उसने एक-एक बोगी को जांचना शुरू किया। लेकिन हैरानी की बात ये थी—हर बोगी खाली थी।

कोई भी यात्री नहीं।

सिर्फ उनके बैग्स, गर्म चाय के कप, आधे खाए हुए खाने... सब ज्यों के त्यों।

जैसे लोग अचानक गायब हो गए हों।

और तभी...

एक आवाज़ गूंजी—बहुत धीमी, पर साफ़।

“तुम बहुत दूर आ गए हो... अयान तिवारी।”

अयान पलटा, पर पीछे कोई नहीं था।

वो आवाज़ गूंज रही थी दीवारों से, हवा से, या शायद... उसकी चेतना से?

सस्पेंस गहराता है।

क्या ट्रेन यात्रियों को किसी और दुनिया में ले जाया गया है?
क्या ये कोई वैज्ञानिक प्रयोग है?
या कोई शक्तिशाली संगठन इसे अंजाम दे रहा है?

और ये रहस्यमयी आवाज़... जानती है अयान को?

आगे क्या होने वाला है, यह जानने के लिए पढ़ते रहिए।


अस्वीकरण (Disclaimer) – "लापता ट्रेन"

"आख़िरी पन्ना" एक काल्पनिक उपन्यास है। इसमें वर्णित सभी पात्र, घटनाएँ और स्थान लेखक की कल्पना मात्र हैं। यदि किसी जीवित या मृत व्यक्ति, संस्था, स्थान या घटना से कोई समानता मिलती है, तो वह मात्र संयोग माना जाए। इस उपन्यास का उद्देश्य केवल मनोरंजन प्रदान करना है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं और इनका किसी भी वास्तविक व्यक्ति, समुदाय या संस्था से कोई संबंध नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे केवल एक रचनात्मक कल्पना के रूप में पढ़ें।

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