🔱 भूमिका
महाभारत युद्ध को केवल योद्धाओं और उनके शौर्य के दृष्टिकोण से देखा जाता है, परंतु इस भीषण युद्ध के पीछे कई अनदेखे, अनसुने पात्र भी हैं जिन्होंने बिना अस्त्र-शस्त्र उठाए भी युद्ध को सार्थक बनाने में योगदान दिया। ऐसा ही एक प्रेरणादायक पात्र हैं उडुपी के राजा, जिन्होंने युद्ध में भाग न लेकर भी अपने कौशल, बुद्धिमत्ता और सेवाभाव से एक महान कार्य किया — दोनों सेनाओं के लिए भोजन की व्यवस्था।
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🛕 उडुपी राजा: युद्ध में तटस्थ सेवक
उडुपी के राजा ने महाभारत युद्ध में किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं किया। वे तटस्थ रहे, लेकिन उनका कर्तव्यबोध उन्हें एक अहम भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता रहा — दोनों पक्षों की सेना के लिए भोजन की व्यवस्था करना।
✅ अनूठी विशेषताएं:
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प्रतिदिन सटीक मात्रा में भोजन पकाया गया।
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ना तो भोजन कम पड़ा, और ना ही अन्न व्यर्थ हुआ।
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किसी भी योद्धा को भूखा नहीं सोना पड़ा।
🔍 रहस्य: श्रीकृष्ण और मूंगफली का संकेत
उडुपी राजा ने इतनी सटीक भोजन व्यवस्था कैसे की? इसका रहस्य छिपा था भगवान श्रीकृष्ण के मूंगफली खाने के अद्भुत संकेत में।
🔶 कैसे मिला संकेत?
हर रात श्रीकृष्ण जितनी मूंगफली खाते, उडुपी राजा उससे यह जान लेते कि अगले दिन युद्ध में कितने सैनिक मारे जाएंगे।
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उसी के अनुसार अगले दिन की भोजन योजना बनाई जाती थी।
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यही कारण था कि कभी भी खाना अधिक या कम नहीं हुआ।
🍽️ भोजनालय की अद्भुत व्यवस्था
📍स्थान:
युद्ध क्षेत्र से कुछ दूरी पर विशाल भोजनशाला बनाई गई थी।
👨🍳 रसोइये:
कई अनुभवी रसोइए सुबह से ही काम में जुट जाते थे।
🌿 व्यंजन:
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पूरी तरह सात्विक और ताजगी से भरपूर।
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उडुपी के व्यंजनों की खुशबू पूरे क्षेत्र में फैल जाती थी।
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जो सैनिक भोजन करते, वे उसकी सराहना करते न थकते।
💬 युधिष्ठिर की जिज्ञासा
पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने जब यह देखा कि हर दिन भोजन ना तो कम हो रहा है, ना ही व्यर्थ जा रहा, तो उन्होंने उडुपी राजा से इसका रहस्य पूछा।
राजा ने विनम्रता से श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए संकेतों और अपने अनुभव को साझा किया।
🌍 वैश्विक सहभागिता और उडुपी की भूमिका
महाभारत युद्ध में लगभग 77 देशों ने भाग लिया था। लाखों सैनिकों के लिए भोजन की जिम्मेदारी अकेले उडुपी राजा ने उठाई थी।
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उन्होंने इस कार्य को एक धर्म और सेवा के रूप में देखा।
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उनके इस कार्य से यह प्रमाणित होता है कि बिना हथियार उठाए भी कोई युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
🕉️ निष्कर्ष: सेवा में ही सच्चा धर्म
उडुपी के राजा का यह प्रसंग हमें सिखाता है:
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युद्ध में केवल तलवार नहीं चलती, सेवा और विवेक भी उसी तरह उपयोगी हैं।
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वास्तविक नायक वही है जो बिना स्वार्थ के सेवा करता है।
साभार:
प्रस्तुत लेख श्री सरदारी लाल धीमान जी द्वारा प्रायोजित है।
परिचय: सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंक प्रबंधक, निवेश सलाहकार तथा महासचिव – वरदान वेलफेयर सोसाइटी, पंचकूला। (यह एक परोपकारी संस्था है, जो पिछले 7 वर्षों से समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है।)
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परिचय: सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंक प्रबंधक, निवेश सलाहकार तथा महासचिव – वरदान वेलफेयर सोसाइटी, पंचकूला। (यह एक परोपकारी संस्था है, जो पिछले 7 वर्षों से समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है।)
