Shravan Kumar's Devotion and Duty: An Inspiring Tale of Ideal Sonship: श्रवण कुमार की भक्ति और सेवा: एक आदर्श संतान की प्रेरक कथा

Shravan Kumar carrying blind parents in baskets on shoulders near forest river path


भूमिका

भारतीय संस्कृति में मातृ-पितृ सेवा को सर्वोच्च धर्म माना गया है। हिंदू माइथोलॉजी में एक ऐसा आदर्श पात्र हैं श्रवण कुमार, जिनकी निःस्वार्थ सेवा और भक्ति ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी कहानी न केवल कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है, बल्कि आज की पीढ़ी को भी एक गहरा संदेश देती है।

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कथा सारांश

बहुत समय पहले की बात है। एक श्रवण नाम का बालक था जो अंधे माता-पिता का इकलौता पुत्र था। वह अत्यंत आज्ञाकारी, विनम्र और सेवा भाव से ओतप्रोत था। उसके माता-पिता तीर्थ यात्रा करना चाहते थे, परंतु वे नेत्रहीन और वृद्ध थे।

श्रवण कुमार ने उन्हें कंधे पर रखे हुए दो बांस की टोकरीनुमा पालकी में बैठाया और स्वयं पैदल तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ा। वह हर तीर्थ स्थल पर अपने माता-पिता को ले गया, उन्हें स्नान करवाया, पूजा करवाई, और भोजन कराया।

एक दिन जब वह अयोध्या के समीप सरयू नदी के किनारे विश्राम कर रहा था और माता-पिता के लिए जल भरने गया, तभी राजा दशरथ वहां शिकार करने आए। उन्होंने जल भरने की आवाज़ को हिरण समझकर तीर चला दिया, और दुर्भाग्यवश वह तीर श्रवण कुमार को लगा।

श्रवण कुमार घायल होकर धरती पर गिर पड़ा। जब राजा दौड़े तो देखा कि उन्होंने एक निर्दोष युवक को मार दिया है। श्रवण कुमार ने मरते-मरते राजा से अनुरोध किया कि वे उसके अंधे माता-पिता को यह दुखद समाचार दें।

राजा दशरथ जब माता-पिता के पास पहुंचे और सारी बात बताई, तो वे पुत्र वियोग से तड़पकर प्राण त्याग बैठे। उन्होंने राजा को श्राप दिया कि जैसे उन्होंने पुत्र वियोग का दुख दिया है, वैसे ही राजा को भी पुत्र वियोग सहना पड़ेगा — और यही श्राप आगे चलकर राम के वनवास का कारण बना।

प्रेरणा और भावार्थ

श्रवण कुमार की कथा संतान धर्म, सेवा, और त्याग का सर्वोच्च उदाहरण है। उन्होंने अपने आराम और जीवन को पीछे छोड़ अपने माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने को प्राथमिकता दी। उनकी निःस्वार्थ सेवा यह सिखाती है कि सच्चा प्रेम दिखावे में नहीं, सेवा और समर्पण में होता है।

निष्कर्ष

आज जब परिवारों में पीढ़ियों के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं, श्रवण कुमार की यह कथा फिर से यह याद दिलाती है कि माता-पिता की सेवा केवल दायित्व नहीं, वरदान है। यह प्रसंग बताता है कि सेवा में ही सच्चा धर्म है।

नैतिक शिक्षा

"माता-पिता की सेवा करने वाला संतान ही सच्चा भक्त और सच्चा इंसान होता है।"
"निःस्वार्थ सेवा और समर्पण से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।"

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