Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 5 of 33

 

Krishna with peacock feather teaching Gita to Arjuna on divine chariot at Kurukshetra with sunrise and Sanskrit verses


संन्यासयोग – त्याग नहीं, उत्तरदायित्व की भावना

"संन्यासयोग का आर्य दृष्टिकोण: त्याग नहीं, उत्तरदायित्व ही सच्चा योग है"
"क्या संन्यास का अर्थ सब कुछ छोड़ देना है? जानिए गीता के संन्यासयोग को आर्य समाज और तपोभूमि की दृष्टि से, जहां त्याग नहीं, कर्म और उत्तरदायित्व सर्वोपरि है।"

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🔍 भूमिका

अक्सर लोग मानते हैं कि संन्यास यानी सब कुछ त्याग देना – घर, समाज, रिश्ते, जिम्मेदारियाँ और जीवन के सुख।

परन्तु गीता के अनुसार और आर्य समाज के तर्कसंगत दृष्टिकोण में संन्यास का अर्थ कुछ और है।

“सच्चा संन्यास वह है, जहाँ मन त्याग करता है, लेकिन कर्म नहीं रुकते।”

🧘‍♂️ गीता में संन्यास का क्या अर्थ है?

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

“नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।”
(नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने से आत्मा की उन्नति नहीं होती।)

आर्य समाज की दृष्टि से:

  • संन्यास का अर्थ है – अहंकार, मोह, लोभ, स्वार्थ का त्याग।

  • शरीर और कर्म तो इस संसार के लिए हैं – उन्हें छोड़ना पलायन है, त्याग नहीं।

  • सच्चा त्याग है – कर्तव्य निभाते हुए मोह और फल की आसक्ति छोड़ देना।

🧠 कर्म और संन्यास एक साथ कैसे?

पस्वियों की शिक्षा:

  • कोई भी कर्म छोटा या तुच्छ नहीं, जब वह कर्तव्य और सेवा की भावना से किया जाए।

  • गृहस्थ भी संन्यासी हो सकता है – अगर वह लोभ-मुक्त और समाज-सेवी हो।

  • संन्यास संघर्ष से भागना नहीं, बल्कि जीवन के बीचों-बीच धर्म निभाना है।

            💡 “त्याग तब महान होता है, जब वह जिम्मेदारी के साथ किया जाए।” 

🛑 त्याग का मतलब पलायन नहीं

गीता कहती है:

“संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।”
(अगर योग यानी कर्मयोग से रहित संन्यास है, तो वह दुःखदायी होता है।)

आर्य समाज का मत:

  • केवल भगवा वस्त्र पहन लेना या जंगल में चले जाना – यह संन्यास नहीं

  • जो राष्ट्र, समाज, परिवार और सत्य के लिए काम करे, वही सच्चा संन्यासी है।

  • त्याग का सही रूप है – अहंकार, आलस्य और मोह का परित्याग।

🌱 आधुनिक युग में संन्यास का स्वरूप

आज संन्यास का अर्थ होना चाहिए:

  • कर्तव्य से न भागना।

  • नैतिक जीवन जीना।

  • समाज के लिए काम करना।

  • ईमानदारी और निष्काम भावना से जीवन बिताना।

        आर्य समाज कहता है –
        "त्यागी वह है जो ‘मैं’ को छोड़कर ‘हम’ में जीना सीख जाए।"

🔥 आर्य दृष्टिकोण से संन्यासी कौन?

  • स्वामी दयानंद ने संन्यास लिया, परन्तु उन्होंने कभी समाज से मुँह नहीं मोड़ा।

  • उन्होंने संन्यास का अर्थ बताया – "सत्य के लिए खड़े हो जाना, भले ही अकेले पड़ जाओ।"

  • उनके लिए त्याग का अर्थ था – स्वयं के सुखों को छोड़कर दूसरों के दुःख दूर करना।


"सच्चा संन्यास त्याग नहीं, जिम्मेदारी की चरम सीमा है – यही है आर्य समाज का जीवनदर्शन।"
"True renunciation is not escape, it is the highest form of responsibility – the Arya path."

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🧘‍♂️ FAQs (प्रश्नोत्तर)

Q1: क्या संन्यास का मतलब घर-बार छोड़ देना है?
उत्तर: नहीं। गीता और आर्य समाज दोनों कहते हैं – संन्यास आंतरिक त्याग है, बाहरी पलायन नहीं।

Q2: क्या कोई गृहस्थ व्यक्ति संन्यासी बन सकता है?
उत्तर: हाँ। जो मोह, स्वार्थ और लोभ से मुक्त होकर कर्तव्य निभाता है – वही सच्चा संन्यासी है।

📚 Disclaimer:

यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।

कल नया अध्याय.....

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