"आत्मा शाश्वत है, शरीर तो केवल एक वस्त्र है – इसे बार-बार बदला जाता है।"
"The soul is eternal; the body is merely a garment – worn and shed time and again."
🧿 आत्मा का स्वरूप – शाश्वत, अजर-अमर सत्ता | भगवद्गीता और आर्य समाज की दृष्टि से
🪔 **"न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥"**
– भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 20
✨ भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा के अमरत्व का उपदेश देते हुए कहते हैं कि आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न ही कभी मरती है। आत्मा नित्य, अजर, अमर और शाश्वत है। शरीर नष्ट होता है, पर आत्मा न कभी पैदा होती है और न ही कभी समाप्त होती है।
"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥"
– श्लोक 23
यह आत्मा इतनी सूक्ष्म और दिव्य है कि कोई अस्त्र इसे काट नहीं सकता, कोई अग्नि इसे जला नहीं सकती, जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
🌿 आर्य समाज की दृष्टि में आत्मा:
स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों के आधार पर आत्मा को "चेतन, अमर और कर्मफल भोगी तत्व" कहा है। आर्य समाज मानता है कि आत्मा ईश्वर की सृष्टि का एक स्वतंत्र और शाश्वत घटक है, जो जन्म-मरण के चक्र में शरीर बदलती रहती है, परंतु स्वयं नष्ट नहीं होती।
🕉️ आत्मा के मुख्य लक्षण आर्य समाज अनुसार:
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यह सदा विद्यमान रहती है (नित्यत्व)।
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यह कर्मों के अनुसार जन्म लेती है (पुनर्जन्म)।
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यह ईश्वर से भिन्न, परंतु ईश्वर की रचना है।
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मोक्ष प्राप्ति तक आत्मा शरीर धारण करती रहती है।
📚 जीवन में आत्मा का ज्ञान क्यों जरूरी है?
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मृत्यु का भय दूर होता है: जब हमें पता हो कि आत्मा अमर है, तो किसी के जाने का दुख अस्थायी हो जाता है।
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कर्म का महत्व बढ़ता है: आत्मा को उसके कर्मों का फल मिलता है। इसलिए अच्छे कर्म करना आवश्यक होता है।
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अहंकार मिटता है: यह जानकर कि हम शरीर नहीं, आत्मा हैं – हमारा दृष्टिकोण आध्यात्मिक और विनम्र बनता है।
💡 व्यवहारिक उदाहरण:
जैसे दीपक बुझ सकता है, पर अग्नि का तत्व नष्ट नहीं होता – वैसे ही शरीर नष्ट हो सकता है, पर आत्मा नहीं। आर्य समाज के अनुसार, आत्मा को पहचानना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।
📌 Arya Samaj आधारित प्रेरणाएं:
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‘वेदों की ओर लौटो’ – आत्मा और ईश्वर के सच्चे स्वरूप को वेदों के माध्यम से जानो।
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‘सत्यार्थ प्रकाश’ – स्वामी दयानंद का ग्रंथ, जो आत्मा, मोक्ष और पुनर्जन्म की विस्तृत व्याख्या करता है।
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‘यज्ञ और तप’ – आत्मा की उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):
🔹 Q1: आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है?
उत्तर: आर्य समाज के अनुसार आत्मा और परमात्मा दो अलग-अलग सत्ता हैं। आत्मा जीव है – जो चेतन, सीमित और कर्मों का भोगी है। परमात्मा यानी ईश्वर – सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, और सृष्टि का रचयिता है। आत्मा ईश्वर की उपासना से मोक्ष प्राप्त कर सकती है, परंतु ईश्वर कभी आत्मा नहीं बनता।
🔹 Q2: आत्मा को कैसे महसूस किया जा सकता है?
उत्तर: आत्मा को सीधे देखा नहीं जा सकता, परंतु इसके प्रभाव को समझा जा सकता है – जैसे चेतना, विचार, अनुभव, दुःख-सुख की अनुभूति। योग, ध्यान, सत्य जीवन और वेदाध्ययन आत्मा को जानने के प्रमुख साधन हैं।
🎯 निष्कर्ष:
आत्मा का ज्ञान हमें जीवन के हर मोड़ पर स्थिर, विनम्र और जिम्मेदार बनाता है।
आर्य समाज का यह चिंतन हमें यह सिखाता है कि “हम शरीर नहीं, आत्मा हैं” – और यही सोच हमें मृत्यु के भय से मुक्त करती है, मोक्ष की ओर ले जाती है।
📚 Disclaimer:
यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।
कल नया अध्याय.....
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