Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 10 of 33


Krishna with peacock feather teaching Gita to Arjuna on divine chariot at Kurukshetra with sunrise and Sanskrit verses


संन्यासयोग – त्याग वस्त्रों का नहीं, मोह का होना चाहिए


"संन्यासयोग का आर्य दृष्टिकोण: वस्त्र नहीं, मोह का त्याग ही सच्चा संन्यास है"
"क्या संन्यास का मतलब केवल घर-परिवार छोड़ना है? जानिए गीता के संन्यासयोग को आर्य समाज और तपोभूमि की दृष्टि से – जहाँ संन्यास का अर्थ है मोह, लोभ और आसक्ति का त्याग।"

🔍 भूमिका

समाज में यह धारणा बन गई है कि संन्यास का अर्थ है – घर छोड़ देना, भगवा वस्त्र पहनना, या संसार से भाग जाना।
परंतु गीता, वेद, और आर्य समाज के अनुसार सच्चा संन्यास है – भीतर के मोह, राग-द्वेष, और स्वार्थ का त्याग, न कि बाहरी जीवन से पलायन।

“वस्त्र बदलने से नहीं, विचार बदलने से संन्यासी बना जाता है।”

📜 गीता में संन्यासयोग की मूल भावना

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

“नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।”
(कर्म करना अकर्तव्य रहने से श्रेष्ठ है।)

आर्य समाज की व्याख्या:

  • संन्यास = मोह, स्वार्थ और अज्ञान का त्याग

  • त्याग = केवल वैराग्य नहीं, कर्तव्य का उच्चतम स्वरूप

  • सच्चा संन्यासी वह है, जो संसार में रहकर भी संसार के मोह में नहीं फंसता।

🧘‍♂️ आर्य दृष्टिकोण में संन्यास क्या है?

स्वामी दयानंद ने कहा:

"संन्यास का अर्थ है – सत्य के लिए जीवन समर्पण।"

तपोभूमि में संन्यास की परिभाषा:

  • भावनात्मक संतुलन

  • कर्तव्य में लिप्त रहकर भी असक्त भाव

  • भोग नहीं, सेवा में रुचि

💡 “संन्यास घर छोड़ना नहीं, मोह छोड़ना है।”

👕 वस्त्रों का नहीं, विचारों का त्याग चाहिए

  • कोई वस्त्र पहन लेने से आत्मा मुक्त नहीं होती

  • संन्यास है – क्रोध, लोभ, मोह, कामना और अहंकार को त्यागना

  • भगवा पहनने से पहले मन को शुद्ध करना जरूरी है

आर्य समाज कहता है:

“जिसने लोभ छोड़ा, वही त्यागी है।
जिसने मोह छोड़ा, वही संन्यासी है।”

🔥 संन्यास का सामाजिक योगदान

सच्चा संन्यासी:

  • समाज से नहीं भागता, समाज को दिशा देता है

  • घर नहीं छोड़ता, घर को तपोभूमि बनाता है

  • मौन नहीं रहता, सत्य बोलता है – चाहे अकेला क्यों न हो

“आर्य संन्यासी कर्म से विरक्त नहीं, मोह से विरक्त होता है।”

🌱 संन्यास और आत्मा की मुक्ति

  • जब आत्मा मोह से मुक्त होती है, तभी विवेक जाग्रत होता है

  • संन्यास योग के द्वारा आत्मा:

    • भूतकाल की पीड़ा से मुक्त

    • वर्तमान में स्थिर

    • भविष्य की चिंता से निर्भय


"संन्यास घर छोड़ना नहीं, मोह छोड़ना है – यही है आर्य मार्ग।"
"Renunciation is not leaving the home, but detaching from illusion – the Arya way."

🧘‍♂️ FAQs (प्रश्नोत्तर)

Q1: क्या संन्यास लेने के लिए जीवन त्यागना ज़रूरी है?
उत्तर: नहीं। आर्य दृष्टिकोण के अनुसार सच्चा संन्यास आत्मा का आंतरिक त्याग है – बाहरी नहीं।

Q2: क्या गृहस्थ भी संन्यासी हो सकता है?
उत्तर: हां। अगर वह मोह, लोभ और अहंकार से मुक्त है – तो वह भी एक तपस्वी है।

📚 Disclaimer:

यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।

कल नया अध्याय.....

आपको यह लेख भी पसंद आ सकता है 👉 Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 09 of 33

अगर आप निवेश के लिए सही योजना बनाना चाहते हैं, तो SIP और SWP कैलकुलेटर 2025 जरूर देखें। यह टूल आपके निवेश लक्ष्यों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।

Click here to Win Rewards!




Post a Comment

Previous Post Next Post