"समत्व ही जीवन का सच्चा योग है – सुख-दुख से परे, आत्मा की शांति में स्थिर।"
"Equanimity is the true yoga – rising above joy and sorrow, resting in inner peace."
Explore the essence of equanimity (samta) in Bhagavad Gita Chapter 2, Verse 38. Learn how balance in success and failure leads to spiritual growth and inner peace.
🌼 समत्व योग: सुख-दुख में समान रहने की कला | भगवद्गीता से जीवन का सार
🪔 “सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।”
– भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 38
✨ प्रस्तावना:
क्या हम जीवन की हर स्थिति में स्थिर रह सकते हैं? जब कोई अपना हमें धोखा दे, व्यापार में घाटा हो, या कोई प्रियजन हमें छोड़ दे — क्या हम तब भी शांत रह सकते हैं? भगवद्गीता का यह श्लोक बताता है कि सच्चा योग वही है, जहाँ सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय हमें विचलित न करें।
🧘♂️ श्लोक का विस्तृत भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि युद्ध करो, लेकिन समत्व की भावना से। परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है, केवल कर्म पर ध्यान दो। जो व्यक्ति हर परिस्थिति में सम रहता है, वही योगी है।
यह ‘कर्मयोग’ की नींव है – निष्काम कर्म, जहाँ ना तो विजय पर अहंकार होता है, ना पराजय पर पश्चाताप।
🌿 जीवन में समत्व का महत्व:
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मानसिक शांति: समत्व का अभ्यास हमें चिंता और तनाव से मुक्त करता है।
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निर्णय लेने की क्षमता: भावनात्मक संतुलन से बेहतर निर्णय संभव होता है।
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आध्यात्मिक उन्नति: समत्व आत्मा को विकारों से दूर रखता है।
📚 विशेषज्ञ दृष्टिकोण:
आर्य समाज और तपोभूमि जैसे चिंतन पद्धतियों में समत्व को सर्वोच्च गुण माना गया है। उनका मानना है कि जो व्यक्ति अपने "मन" पर विजय प्राप्त करता है, वही संसार में सच्चा विजयी होता है।
💡 व्यवहारिक सुझाव:
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ध्यान और प्राणायाम करें, जिससे मन स्थिर हो।
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हर परिस्थिति में “सीख” खोजें, न कि दोष।
स्वयं से संवाद करें, क्या यह मेरे नियंत्रण में है?
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🎯 उदाहरण:
रामायण में भगवान राम वनवास को भी ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करते हैं। न कोई क्रोध, न शिकवा – यही समत्व की चरम सीमा है।
📝 उपसंहार:
📚 Disclaimer:
यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।
कल नया अध्याय.....
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