"अहंकार से नहीं, विनम्रता से मिलती है मुक्ति। चलिए, ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर बढ़ें।"
"Let go of ego, embrace the eternal self – as Arya Samaj teaches."
🪔 श्लोक:
"निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा, अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।"
– भगवद गीता, अध्याय 15, श्लोक 5
भावार्थ:
अहंकार और मोह से मुक्त, संग-दोषों को जीतने वाले, आत्मा में स्थिर और कामनाओं से रहित व्यक्ति ही परम अवस्था को प्राप्त करता है। गीता का यह श्लोक स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि आत्मिक उन्नति के लिए अहंकार का त्याग अनिवार्य है।
🌿 अहंकार – आत्मा का आवरण
मनुष्य का सच्चा स्वरूप उसकी आत्मा है – शुद्ध, शांत, चैतन्यमय। लेकिन जब वह स्वयं को शरीर, पद, धन, जाति, धर्म, ज्ञान आदि से जोड़ लेता है, तो "मैं" और "मेरा" की भावना उत्पन्न होती है। यही अहंकार धीरे-धीरे आत्मा को ढक लेता है।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्पष्ट रूप से कहा कि – "अहंकार ही अज्ञान का मूल है, और आत्मज्ञान से ही उसका अंत संभव है।"
🌼 आर्य समाज में अहंकार का स्थान
आर्य समाज का मूल उद्देश्य है – "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" अर्थात् समस्त विश्व को श्रेष्ठ बनाना। लेकिन यह तभी संभव है जब व्यक्ति आत्मिक रूप से श्रेष्ठ बने। इसके लिए आर्य समाज जिन दस नियमों का पालन करने की प्रेरणा देता है, उनमें विनम्रता, सेवा और सत्य के प्रति समर्पण प्रमुख हैं।
आर्य समाज मानता है कि –
"जो अहंकारी है, वह सत्य को नहीं पहचान सकता; और जो सत्य का साधक है, उसमें अहंकार टिक ही नहीं सकता।"
KridayKraft Metal Ganesha Wall Hanging
Rating: ⭐ 4.5/5 (1,856 reviews)
Popularity: 600+ bought in past month
Deal Price: ₹270 ₹798 (66% OFF)
✅ Inclusive of all taxes & Fulfilled by Amazon
Buy Now on Amazon
स्वामी दयानंद के जीवन में भी विनम्रता का अद्भुत उदाहरण मिलता है। उन्होंने अनेक विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया, लेकिन कभी अभिमान नहीं किया। उनके विचार थे – "जो कुछ मैंने जाना है, वह ईश्वर की कृपा है, मेरा कुछ नहीं।"
🧘 अहंकार के त्याग के उपाय – आर्य समाज की दृष्टि से
-
यज्ञ और प्रार्थना:
आर्य समाज में यज्ञ केवल अग्नि में आहुति नहीं, बल्कि अपने विकारों को जलाने की प्रक्रिया है। हर आहुति के साथ "इदं न मम" – यह मेरा नहीं – की भावना व्यक्ति को अहंकार से दूर करती है। -
सत्संग और स्वाध्याय:
ऋग्वेद, यजुर्वेद जैसे ग्रंथों का अध्ययन और शुद्ध चिंतन आत्मा को ज्ञान देता है। आर्य समाज की सभा में होने वाले सत्संग व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। -
सेवा और परोपकार:
जब हम दूसरों की निस्वार्थ सेवा करते हैं, तो हमें अनुभव होता है कि हम किसी से श्रेष्ठ नहीं, सब ईश्वर की संतान हैं। सेवा से विनम्रता आती है, और अहंकार स्वतः ही टूटने लगता है। -
वेदों का ज्ञान:
वेद कहते हैं – "एको ब्रह्म, द्वितीयो नास्ति" – ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है। जो इस ज्ञान को आत्मसात कर लेता है, उसमें "मैं" की भावना नहीं रहती।
📚 दैनिक जीवन में अहंकार का प्रभाव
-
परिवार में कलह – "मैं सही हूँ" की जिद से रिश्तों में दरार आती है।
-
समाज में संघर्ष – जाति, धर्म या पद का अहंकार दूसरों को छोटा समझने पर मजबूर करता है।
-
आध्यात्मिक अवरोध – ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग में सबसे बड़ा पत्थर हमारा "मैं" होता है।
लेकिन जैसे ही हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि हम केवल ईश्वर की रचना हैं, और हर आत्मा उसी परम आत्मा का अंश है, अहंकार टूटने लगता है।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: क्या अहंकार त्यागना आत्मविश्वास खोना नहीं है?
उत्तर: नहीं। आत्मविश्वास का आधार आत्मज्ञान है, जबकि अहंकार अज्ञान पर टिका होता है। आर्य समाज आत्मसम्मान को बढ़ाने की बात करता है, न कि झूठे गर्व को। आत्मविश्वास कहता है "मैं कर सकता हूँ", और अहंकार कहता है "केवल मैं ही कर सकता हूँ" – दोनों में बड़ा अंतर है।
प्रश्न 2: क्या केवल सन्यासी ही अहंकार छोड़ सकते हैं?
उत्तर: बिल्कुल नहीं। गीता और आर्य समाज दोनों ही गृहस्थ जीवन में रहते हुए आत्मिक उन्नति की बात करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह गृहस्थ हो, विद्यार्थी हो या सन्यासी – अपने व्यवहार, विचार और कर्मों से अहंकार त्याग सकता है। यह एक आंतरिक साधना है, न कि बाहरी परिस्थिति।
🌺 निष्कर्ष
"जहाँ 'मैं' है, वहाँ 'तू' नहीं; और जहाँ 'तू' है, वहाँ 'मैं' नहीं।"
ईश्वर को पाने की राह में अहंकार सबसे बड़ा रोड़ा है। आर्य समाज हमें प्रेरणा देता है कि हम यज्ञ, स्वाध्याय और सेवा के माध्यम से इस अहंकार को पिघलाएं और आत्मा की शुद्धता को प्राप्त करें।
सच्ची मुक्ति तब मिलती है, जब "मैं" मिटता है और "वह" प्रकट होता है।
📚 Disclaimer:
यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।
कल नया अध्याय.....
आपको यह लेख भी पसंद आ सकता है 👉 Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 06 of 33
