Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 11 of 33


Krishna with peacock feather teaching Gita to Arjuna on divine chariot at Kurukshetra with sunrise and Sanskrit verses


स्वधर्म – अपने कर्म और कर्तव्य में ही है मोक्ष

"स्वधर्म का आर्य दृष्टिकोण: जन्म से नहीं, कर्म से तय होता है धर्म"
"क्या धर्म जन्म से तय होता है? गीता और आर्य समाज की दृष्टि से जानिए स्वधर्म का सच्चा अर्थ – जहाँ व्यक्ति का कर्तव्य ही उसका धर्म है और कर्म ही मोक्ष का मार्ग।"

🔍 भूमिका

भारतीय समाज में अक्सर धर्म को जाति, परंपरा या कुल पर आधारित माना जाता है।
परंतु गीता, वेद, और आर्य समाज की दृष्टि में “स्वधर्म” का अर्थ है – व्यक्ति का निज कर्म, कर्तव्य और नैतिक दायित्व

“धर्म वह नहीं जो हमें जन्म से मिला,
धर्म वह है जो हम विवेक से चुनें।”

📜 गीता में स्वधर्म की व्याख्या

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

“श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।”
(दूसरों का धर्म भले ही अच्छा लगे, लेकिन स्वयं का धर्म – भले ही उसमें दोष हो – श्रेष्ठ है।)

आर्य समाज की व्याख्या:

  • स्वधर्म = निज स्वभाव + ज्ञान + कर्तव्य का योग

  • जाति या कुल नहीं, व्यक्ति का आचरण और कर्म ही धर्म का आधार है

  • धर्म वही है, जो वेद सम्मत, लोकहितकारी और आत्मकल्याणकारी हो

🧘‍♂️ स्वधर्म का तात्पर्य – आर्य दृष्टिकोण से

स्वामी दयानंद ने स्पष्ट कहा:

“धर्म वह है जो सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और तप पर आधारित हो।”

तपोभूमि की साधना में स्वधर्म:

  • अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना

  • सत्य बोलना, न्याय करना

  • परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व निभाना

💡 “स्वधर्म वह दीपक है, जो आत्मा को ईश्वर तक पहुँचाता है।”

🔥 धर्म जन्म से तय नहीं होता

  • ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र – ये कर्म से बनते हैं, जन्म से नहीं

  • गीता और वेद दोनों ही वर (गुण-आधारित वर्गीकरण) को स्वीकारते हैं, जाति व्यवस्था को नहीं

आर्य समाज कहता है:

“हर व्यक्ति ब्रह्मज्ञानी बन सकता है, यदि वह अपने धर्म को जानकर आचरण करे।”

🌱 स्वधर्म ही मोक्ष का मार्ग क्यों?

  • आत्मा की उन्नति तभी होती है जब वह स्वभाव, क्षमता और विवेक से अपने कर्तव्य का पालन करती है

  • परधर्म अपनाने से भ्रम और पाखंड बढ़ता है

  • अपने धर्म का पालन → मन की स्थिरता → आत्मा की शुद्धि → ईश्वर से एकत्व

“जो कर्म अपने नहीं, वो बंधन हैं – जो कर्तव्य हैं, वो मोक्ष का द्वार।”


"धर्म वो नहीं जो हमें जन्म से मिला, धर्म वो है जो हम विवेक से निभाते हैं।"
"Duty is not what we’re born into, but what we choose with wisdom."

🧘‍♂️ FAQs (प्रश्नोत्तर)

Q1: क्या स्वधर्म का पालन करने के लिए पूजा-पाठ जरूरी है?
उत्तर: नहीं। स्वधर्म पूजा-पाठ नहीं, कर्तव्य और सत्याचरण में है।

Q2: क्या गृहस्थ जीवन में भी स्वधर्म का पालन संभव है?
उत्तर: बिल्कुल। गृहस्थ जीवन में अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व निभाना ही स्वधर्म है।

📚 Disclaimer:

यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।

कल नया अध्याय.....

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