राजधानी का नाम गंगा जी के नाम पर: चोल वंश के सबसे गौरवपूर्ण सैन्य अभियान की अमर कहानी
Why Rajendra Chola Named His Capital after River Ganga : गंगाजल से समर्पित चोल सम्राट की ऐतिहासिक श्रद्धांजलि
राजेंद्र चोल का गौरवशाली अभियान – जब दक्षिण भारत ने उत्तर को छू लिया
राजेंद्र चोल प्रथम, चोल वंश के सबसे प्रभावशाली सम्राटों में गिने जाते हैं। साल 1023 से 1027 के बीच उनका उत्तर भारत की ओर किया गया सैन्य अभियान भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा और सुव्यवस्थित सैन्य अभियान माना जाता है। इस युद्ध का प्रमुख उद्देश्य सिर्फ साम्राज्य विस्तार नहीं था, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संकल्प को पूरा करना भी था – गंगा जल को लाकर नई राजधानी की स्थापना करना।
राजेंद्र चोल का साम्राज्य उस समय दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में फैल चुका था। लेकिन उन्होंने अपने साम्राज्य की राजधानी को केवल एक प्रशासनिक केंद्र नहीं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतीक के रूप में स्थापित करना चाहा।
गंगाजल के लिए चला ऐतिहासिक सैन्य अभियान
गंगा नदी तंजावुर से लगभग 2000 किलोमीटर दूर थी। इतने लंबे सफर में, उन्होंने ना सिर्फ ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ और बांग्लादेश तक विजय पताका फहराई, बल्कि इंद्रत, राणासुर, महिपाल और गोविंदचंद्र जैसे शक्तिशाली राजाओं को भी पराजित किया।
महमूद गजनी और चोल सम्राट की रणनीति
इसी दौरान महमूद गजनी का भी भारत पर आक्रमण चल रहा था। लेकिन जब वह चित्रकूट के पास कलिंजर पहुंचा, तो सिर्फ 60 किलोमीटर दूर राजेंद्र चोल की सेना का शिविर था। इतिहासकार मानते हैं कि चोल सम्राट और राजा भोज की मित्रता के चलते ही गजनी ने राजा भोज पर आक्रमण नहीं किया।
यह घटना यह दर्शाती है कि चोल साम्राज्य की शक्ति सिर्फ दक्षिण तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उत्तर भारत के राजनीतिक समीकरणों पर भी उसका गहरा प्रभाव था।
गंगाजल से नामकरण – ‘गंगईकोंड चोलपुरम’ की स्थापना
जब राजेंद्र चोल गंगाजल प्राप्त करके दक्षिण लौटे, तो उन्होंने नई राजधानी की स्थापना की और उसका नाम गंगा जी के सम्मान में गंगईकोंड चोलपुरम रखा।
यह सिर्फ नामकरण नहीं था – यह चोल सम्राट की भारत की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक भावनाओं के प्रति श्रद्धा का प्रतीक था। गंगाजल के समर्पण के लिए एक विशाल झील का निर्माण किया गया जिसे ‘चोल गंगम’ कहा गया, जो आज के समय में पुन्नई झील के नाम से जानी जाती है।
विशेषज्ञों की राय और ऐतिहासिक साक्ष्य
इतिहासकार प्रो. एन. सुब्रमण्यम के अनुसार –
“राजेंद्र चोल का गंगा अभियान, भारत की राजनीतिक शक्ति के साथ-साथ सांस्कृतिक समर्पण का भी प्रतीक है। यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में चोल साम्राज्य की सर्वोच्चता को प्रमाणित करता है।”
दूसरी ओर, पुरातत्वविद डॉ. इला वेंकटेश बताती हैं –
“गंगईकोंड चोलपुरम में निर्मित मंदिर और झील, न सिर्फ वास्तुशिल्प की दृष्टि से अनोखे हैं, बल्कि यह गंगा जी के प्रति राजेंद्र चोल की गहरी आस्था को दर्शाते हैं।”
नामकरण से जुड़े प्रभाव और आज का परिप्रेक्ष्य
गंगा जी के नाम पर राजधानी का नाम रखने से चोल सम्राट ने यह दिखाया कि भारत केवल भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि संस्कृति, धर्म और आस्था का एक साझा धागा है। यह परंपरा आज भी अनेक राज्यों में देखने को मिलती है, जहां धार्मिक भावनाओं से प्रेरित नामकरण होता है।
निष्कर्ष: गंगा जी के नाम से समर्पित एक ऐतिहासिक राजधानी
राजेंद्र चोल प्रथम ने केवल एक सैन्य विजेता की तरह नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक राष्ट्र निर्माता की तरह कार्य किया। उनकी गंगाजल यात्रा और राजधानी का नामकरण भारत के इतिहास में एक प्रेरक अध्याय है, जो आज भी हमें संस्कृति, संकल्प और श्रद्धा का महत्व सिखाता है।
साभार:
श्री सरदारी लाल धीमान: सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंक प्रबंधक, निवेश सलाहकार
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