गुरबाणी का यह अमर संदेश — “एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे” — हमें याद दिलाता है कि सृष्टि के हर जीव में वही एक परमात्मा विद्यमान है। यह पंक्ति गुरु नानक देव जी के समानता के सिद्धांत को गहराई से उजागर करती है, जो जाति, धर्म, लिंग या पद के भेदभाव से ऊपर उठने की प्रेरणा देती है।
Equality in Gurbani: सबमें वही एक नूर
गुरबाणी का मर्म यही है कि जब सबका स्रोत एक है, तो भेदभाव क्यों? इंसान ने समाज में ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, धर्म और भाषा के विभाजन स्वयं बनाए हैं। लेकिन Equality in Gurbani हमें यह सिखाती है कि हर आत्मा उसी एक दिव्य चेतना का अंश है।
वास्तविक समानता का अर्थ
समानता का मतलब केवल बाहरी रूप से सबको एक जैसा मानना नहीं, बल्कि भीतर से यह अनुभव करना है कि हर व्यक्ति में वही ईश्वर का नूर है। जब यह समझ हमारे भीतर जागती है, तब समाज में करुणा, प्रेम और सह-अस्तित्व की भावना पनपती है।
Equality in Gurbani: आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
आज के दौर में जब धर्म और जाति के नाम पर तनाव बढ़ रहे हैं, तब Equality in Gurbani का संदेश पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। गुरु नानक देव जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से यह बताया कि ईश्वर किसी एक समुदाय का नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता का है।
जब हम किसी व्यक्ति को नीचा समझते हैं, तो हम उस ईश्वर का अपमान करते हैं जो उसी में भी विद्यमान है।
जब हम सबको समान दृष्टि से देखते हैं, तब ही सच्चे अर्थों में भक्ति का आरंभ होता है।
समानता का अभ्यास तभी संभव है जब हम भीतर से दंभ और पूर्वाग्रह को त्याग दें।
विशेषज्ञ की राय
धर्मशास्त्र विश्लेषक डॉ. हरसिमरत सिंह के अनुसार, “Equality in Gurbani एक आध्यात्मिक और सामाजिक क्रांति है। यह न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से मानवता को जोड़ती है, बल्कि समाज में समान अवसर और आदर का आधार भी बनाती है।”
Equality in Gurbani: व्यवहारिक जीवन में अपनाना
अपने परिवार और समाज में सभी के साथ सम्मान से व्यवहार करें।
किसी की जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति देखकर निर्णय न लें।
सेवा और सहयोग को जीवन का हिस्सा बनाएं।
हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश देखने का अभ्यास करें।
जब यह दृष्टि विकसित होती है, तब भीतर का अहंकार मिटने लगता है और प्रेम का विस्तार होता है।
निष्कर्ष: सब में वही प्रभु है
गुरबाणी हमें यह नहीं सिखाती कि हम समान दिखें, बल्कि यह सिखाती है कि हम समान भाव से देखें। Equality in Gurbani हमें सच्चे मानव बनने का मार्ग दिखाती है, जहाँ कोई “ऊँचा” या “नीचा” नहीं, बस एक ही परमात्मा हर हृदय में बसता है।
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