Bhadra Kaal Meaning and Timing – The Untold Truth of Auspicious and Inauspicious Hours

Bhadra Kaal Meaning explained with origin timing and rituals in Hindu astrology

भद्रा काल क्या है? (Bhadra Kaal Meaning and Significance)

भारतीय ज्योतिष में भद्रा काल (Bhadra Kaal) एक अत्यंत महत्वपूर्ण समयावधि मानी जाती है। बहुत से लोग इसे अशुभ मानते हैं, जबकि कुछ विद्वान इसके गूढ़ रहस्यों को जानने के बाद इसे समझदारी से उपयोग करना सिखाते हैं।

भद्रा, सूर्य देव की दूसरी पुत्री मानी जाती हैं। उनका जन्म उस समय हुआ जब भगवान सूर्य की पत्नी छाया ने उन्हें शनि देव के बाद जन्म दिया। शनि देव जहां न्यायप्रिय और कठोर हैं, वहीं भद्रा अपने स्वभाव में त्वरित, तीव्र और कभी-कभी विनाशकारी ऊर्जा रखती हैं।

भद्रा काल कब होता है? (When Does Bhadra Kaal Occur)

भद्रा काल का निर्धारण पंचांग द्वारा किया जाता है। यह समय पंचांग के “करण” भाग में आने वाले “विष्टि करण” से संबंधित होता है। जब भी विश्टि करण चलता है, उस समय को भद्रा काल कहा जाता है।

भद्रा काल हर दिन नहीं आता, बल्कि यह चंद्रमा के गोचर के अनुसार बदलता है।
मुख्य रूप से, भद्रा काल इस प्रकार निर्धारित किया जाता है:

  • अमावस्या से पंचमी तक: भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है।
  • षष्ठी से दशमी तक: भद्रा स्वर्ग लोक में रहती है।
  • एकादशी से पूर्णिमा तक: भद्रा पाताल लोक में रहती है।

जब भद्रा पृथ्वी लोक में होती है, तब वह समय अशुभ माना जाता है, और कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या नई शुरुआत नहीं करनी चाहिए।

भद्रा काल का विधान (The Rule and Belief Behind Bhadra Kaal)

भद्रा काल के समय में शुभ कार्य वर्जित क्यों हैं, इसके पीछे एक कथा प्रसिद्ध है।
कहते हैं कि भद्रा अपने भाई शनि देव की तरह कठोर और क्रोधी थीं। उन्होंने एक बार सभी शुभ कर्मों को नष्ट करने की प्रतिज्ञा ली। तब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें तीन लोकों में घूमने का अधिकार दिया, ताकि मनुष्य सतर्क रहें।

यही कारण है कि भद्रा काल को लेकर लोग आज भी सावधानी बरतते हैं।

भद्रा काल का आरंभ कैसे हुआ? (Origin of Bhadra Kaal)

भद्रा काल की शुरुआत एक दैविक संतुलन के रूप में हुई।
जब मनुष्य निरंतर शुभ कार्यों में लिप्त रहने लगे, तो देवताओं ने यह नियम बनाया कि कुछ समय ऐसा भी होना चाहिए जब व्यक्ति विराम ले, आत्मचिंतन करे और अति-उत्साह से बचा रहे
इस प्रकार भद्रा काल की उत्पत्ति हुई — ताकि जीवन में हर कर्म उचित समय पर हो, न कि केवल शुभ अवसर की खोज में।

भद्रा काल में क्या नहीं करना चाहिए (What Should Be Avoided During Bhadra Kaal)

भद्रा काल के दौरान निम्न कार्य वर्जित माने गए हैं:

  • विवाह या सगाई
  • गृह प्रवेश
  • नया व्यवसाय आरंभ करना
  • शुभ मुहूर्त पर यात्रा आरंभ करना
  • मांगलिक कर्म

हालांकि, तंत्र, उपासना, साधना और ध्यान के लिए यह समय अत्यंत फलदायक माना गया है।

भद्रा काल में क्या करें? (The Hidden Remedy Inside the Bhadra Kaal)

यहाँ वह रहस्य है जो बहुत कम लोग जानते हैं—
यदि कोई व्यक्ति भद्रा काल के दौरान भगवान हनुमान या सूर्य देव की उपासना करता है, तो उसकी ऊर्जा विपरीत प्रभावों को शुद्ध कर देती है।
ॐ भद्रायै नमः” का जप या सूर्य अर्घ्य देना इस काल की अशुभता को नष्ट करता है।

विशेषज्ञ पं. राजेश मिश्र (ज्योतिषाचार्य, वाराणसी) कहते हैं,

“भद्रा काल डरने का नहीं, बल्कि अपनी ऊर्जा को साधने का अवसर है। यदि व्यक्ति श्रद्धा से जप या ध्यान करता है, तो यह काल वरदान बन सकता है।”

भद्रा काल – एक गहरी सीख (Conclusion)

Bhadra Kaal Meaning सिर्फ एक ज्योतिषीय समय नहीं, बल्कि यह हमें सिखाता है कि हर चीज का सही समय होता है।
शुभ और अशुभ, दोनों का संतुलन ही जीवन को पूर्ण बनाता है।
अगली बार जब पंचांग में भद्रा का उल्लेख देखें, तो घबराएं नहीं, बल्कि उसे आत्मसंयम और साधना का अवसर समझें।

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Disclaimer:

यह लेख केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसका उद्देश्य किसी आस्था या परंपरा को ठेस पहुंचाना नहीं है। पाठक अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा और विद्वान की सलाह से निर्णय लें।

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