शीत-उष्ण, सुख-दुख और मान-अपमान में स्थिरता का रहस्य
भगवद् गीता में श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह केवल युद्धभूमि के लिए नहीं था, बल्कि हर इंसान के जीवन के लिए एक मार्गदर्शन था।
जब वे कहते हैं — “शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः स्थिरः” — तो उनका आशय यह है कि जो व्यक्ति हर परिस्थिति में संतुलित रहता है, वही परमात्मा की ओर अग्रसर होता है।
Equanimity in Bhagavad Gita – संतुलन ही जीवन का सूत्र
Keyword: Equanimity in Bhagavad Gita
श्रीकृष्ण जी के अनुसार, जीवन में परिवर्तन अनिवार्य है। कभी सुख तो कभी दुख, कभी सम्मान तो कभी अपमान — ये सभी मनुष्य के अनुभव का हिस्सा हैं।
परंतु जो व्यक्ति इन परिस्थितियों में अपने मन को स्थिर रखता है, वही अखंड शांति और ईश्वर साक्षात्कार के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
मुख्य संदेश
- सुख-दुख अस्थायी हैं – इन्हें स्वीकार करें, नियंत्रित नहीं।
- मान-अपमान मन की अवस्था है – बाहरी नहीं, आंतरिक संतुलन महत्वपूर्ण है।
- स्थिरता आत्मबल बढ़ाती है – आत्मा को शुद्ध और शांत बनाती है।
Experts’ View on Equanimity in Bhagavad Gita
आध्यात्मिक शिक्षक स्वामी चिन्मयानंद के अनुसार —
“Equanimity in Bhagavad Gita is not about indifference, but about wisdom. When one understands the temporary nature of joy and sorrow, stability naturally arises.”
यह स्थिरता साधक को बाहरी परिस्थितियों से मुक्त कर देती है। यह किसी भावनाहीनता का नहीं, बल्कि गहन समझ का प्रतीक है।
How to Practise Equanimity in Bhagavad Gita in Daily Life
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ध्यान (Meditation):
प्रतिदिन कुछ मिनट आत्मचिंतन में बिताएं। यह मन को संतुलित रखता है। -
सचेत प्रतिक्रिया (Mindful Response):
परिस्थितियों पर तुरंत प्रतिक्रिया देने से पहले ठहरें। यह आंतरिक नियंत्रण बढ़ाता है। -
संगति चयन (Right Association):
सकारात्मक और शांत लोगों के साथ समय बिताएं। -
कर्मयोग अपनाएं:
बिना फल की चिंता के कर्म करें — यही भगवद् गीता का मूल संदेश है।
The Essence of Equanimity in Bhagavad Gita
- जो व्यक्ति शीत-उष्ण, सुख-दुख, मान-अपमान में एक समान रहता है, वह किसी बाहरी परिस्थिति से नहीं हिलता।
- यह मानसिक संतुलन ईश्वर से एकता की ओर ले जाता है।
- श्रीकृष्ण जी का यही उपदेश है — स्थिर रहो, क्योंकि स्थिर मन ही स्थायी आनंद का अनुभव करता है।
Conclusion – परमात्मा की प्राप्ति का सच्चा मार्ग
जब मनुष्य अपने जीवन में Equanimity in Bhagavad Gita का अभ्यास करता है, तब वह जीवन के ऊँच-नीच से ऊपर उठ जाता है।
उसे अहसास होता है कि सुख और दुख केवल अनुभव हैं, आत्मा नहीं।
और जब यह समझ गहराती है, तब परमात्मा स्वयं उसके भीतर प्रकट होते हैं।
अगला कदम:
अपने जीवन की छोटी-छोटी परिस्थितियों में स्थिरता का अभ्यास करें — यही सच्चा योग है।
Disclaimer:
यह लेख केवल आध्यात्मिक अध्ययन और आत्मविकास हेतु लिखा गया है। यह किसी धार्मिक प्रचार या संस्था से संबंधित नहीं है।
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