They didn’t wear uniforms, but they defended India’s future — one river at a time.: बिना हथियारों के लड़े वो योद्धा, जिन्होंने भारत को जल के मैदान में विजय दिलाई।
📚 Table of Contents (अनुक्रमणिका):
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भूमिका: जब देश की नदियाँ दांव पर थीं
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विभाजन की आंधी और जल संकट
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तीन सिविल इंजीनियरों की अनसुनी वीरगाथा
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ए.एन. खोंसला: तकनीकी सूझबूझ का प्रतीक
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सरूप सिंह: साहसिक चेतावनी देने वाला योद्धा
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कंवर सेन: बिखरे जल को जोड़ने वाला दृष्टा
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फिरोज़पुर हेडवर्क्स: जल युद्ध का केंद्र
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बikaner का राजनैतिक दांव और Mountbatten से बातचीत
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नेहरू, पटेल और वी.पी. मेनन की भूमिका
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अगर ये इंजीनियर न होते तो क्या होता?
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आज के भारत में इनकी विरासत
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विशेषज्ञों की राय और ऐतिहासिक प्रमाण
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निष्कर्ष: इतिहास आखिर याद करता है
1. भूमिका: जब देश की नदियाँ दांव पर थीं
“नदियाँ केवल जल नहीं लातीं, वो सभ्यता की धमनियाँ होती हैं।”
1947 में भारत का बंटवारा केवल ज़मीन का नहीं था, बल्कि जल, संसाधन और भविष्य की दिशा का भी था। यदि कुछ गिने-चुने इंजीनियर उस समय आगे न आए होते, तो आज भारत का पंजाब और राजस्थान एक बड़े जल संकट से जूझ रहे होते।
2. विभाजन की आंधी और जल संकट
जब 1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन तय हो रहा था, तब सीमाओं के साथ-साथ नदियों का नियंत्रण भी एक गंभीर मुद्दा था। रैडक्लिफ लाइन बना रहे अंग्रेज़ों को भौगोलिक और तकनीकी जमीनी जानकारी का अभाव था। इसी दौर में फिरोज़पुर हेडवर्क्स जैसे प्रमुख जल नियंत्रण केंद्रों का भाग्य तय होना था।
3. तीन सिविल इंजीनियरों की अनसुनी वीरगाथा
ए.एन. खोंसला: तकनीकी सूझबूझ का प्रतीक
श्री ए.एन. खोंसला पंजाब सिंचाई विभाग में वरिष्ठ पद पर थे। उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि रैडक्लिफ योजना में फिरोज़पुर पाकिस्तान को सौंपा जा रहा है, जिससे भारत का नियंत्रण तीन प्रमुख नहरों पर समाप्त हो जाएगा।
सरूप सिंह: साहसिक चेतावनी देने वाला योद्धा
सरूप सिंह जी ने खतरे को समय रहते भांप लिया और तुरंत बीकानेर राज्य के इंजीनियर कंवर सेन को गुप्त पत्र लिखकर आगाह किया कि फिरोज़पुर पाकिस्तान में जा सकता है।
कंवर सेन: बिखरे जल को जोड़ने वाला दृष्टा
कंवर सेन जी, बीकानेर राज्य जल विभाग में कार्यरत थे। उन्होंने जैसे ही खत पढ़ा, तत्कालीन प्रधानमंत्री पन्निकर को स्थिति समझाई और महाराजा सादुल सिंह को हस्तक्षेप के लिए राज़ी किया।
4. फिरोज़पुर हेडवर्क्स: जल युद्ध का केंद्र
यह हेडवर्क्स सतलुज नदी पर स्थित है और तीन प्रमुख नहरों — भाखड़ा, फिरोज़पुर, और गंग नहर — को नियंत्रित करता है। इसमें गंग नहर बीकानेर की जीवनरेखा थी। अगर यह पाकिस्तान को चला जाता, तो बीकानेर जलविहीन हो जाता।
5. बीकानेर का राजनैतिक दांव और Mountbatten से बातचीत
महाराजा सादुल सिंह ने माउंटबेटन को स्पष्ट संदेश दिया — “यदि फिरोज़पुर पाकिस्तान को जाता है, तो बीकानेर पाकिस्तान में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ेगा।” यह बयान एक धमाके की तरह था जिसने ब्रिटिश नेतृत्व को झकझोर दिया।
6. नेहरू, पटेल और वी.पी. मेनन की भूमिका
जब यह मामला कांग्रेस नेतृत्व तक पहुँचा, तो नेहरू ने भी माउंटबेटन से संपर्क साधा और व्यक्तिगत प्रभाव का प्रयोग किया। सर्दार पटेल और वी.पी. मेनन की आंतरिक खुफिया सूचना भी Boundary Commission की गतिविधियों पर सक्रिय थी।
इन्हीं प्रयासों का नतीजा था कि अंततः फिरोज़पुर, ज़ीरा और फाजिल्का भारत में शामिल कर लिए गए।
7. अगर ये इंजीनियर न होते तो क्या होता?
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भारत की जल-नियंत्रण व्यवस्था पाकिस्तान के हाथ में होती।
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बीकानेर जैसे राज्य जल के बिना पाकिस्तान में शामिल हो सकते थे।
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राजस्थान और पंजाब कृषि में पिछड़ जाते।
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शायद भारत को सिंधु जल संधि जैसी स्थिति में मजबूरी में और भी अधिक समझौता करना पड़ता।
8. आज के भारत में इनकी विरासत
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कंवर सेन ने आज़ाद भारत में राजस्थान नहर परियोजना की परिकल्पना की, जिसे आज इंदिरा गांधी नहर के नाम से जाना जाता है।
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उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया।
ये लोग अपने निजी फायदे के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में कार्य कर रहे थे।
9. विशेषज्ञों की राय और ऐतिहासिक प्रमाण
प्रो. मधु त्रिवेदी (इतिहासकार, पंजाब यूनिवर्सिटी):
“यह बात ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है कि अगर फिरोज़पुर पाकिस्तान को दे दिया जाता, तो भारत की सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाती।”
डॉ. अजय सक्सेना (जल नीति विशेषज्ञ):
“सिंधु जल संधि का बीज यहीं से बोया गया था। इंजीनियरों की सक्रियता ने भारत को बातचीत की स्थिति में रखा।”
Punjab Archives और Bikaner Royal Records में इन घटनाओं के दस्तावेज मौजूद हैं, जो इस अद्भुत तकनीकी राष्ट्रसेवा की पुष्टि करते हैं।
10. निष्कर्ष: इतिहास आखिर याद करता है
इन तीन सिविल इंजीनियरों ने तकनीकी समझ, साहस और राष्ट्रप्रेम से एक ऐसा कार्य किया जिसे अब तक इतिहास में वह सम्मान नहीं मिला जिसका वे हकदार थे।
आज जब भारत जल संकट और सीमावर्ती चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब हमें इन Unsung Heroes की गाथा जानना और बताना चाहिए।
साभार:
श्री सरदारी लाल धीमान: सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंक प्रबंधक, निवेश सलाहकार, महासचिव – वरदान वेलफेयर सोसाइटी, पंचकूला-एक परोपकारी संस्था जो पिछले 7 वर्षों से लोगों की सेवा कर रही है ।
📝 Disclaimer (अस्वीकरण):
यह पोस्ट विभिन्न स्रोतों से एकत्रित जानकारी पर आधारित है और इसका उद्देश्य केवल जानकारी साझा करना है। कृपया इसे ऐतिहासिक या कानूनी सलाह न समझें।