भारत के उस नायक की कहानी, जिसे इतिहास ने भुला दिया। The story of a true Indian hero who was forgotten by history.
श्री बटुकेश्वर दत्त की दर्दनाक कहानी: गुमनाम बलिदान की अमर गाथा
कौन थे श्री बटुकेश्वर दत्त?
श्री बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे योद्धा थे जिनका नाम आज शायद ही कोई स्कूल की किताबों में पढ़ाया जाता हो। भगत सिंह के साथ 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंककर ब्रिटिश सरकार को चुनौती देने वाले इस क्रांतिकारी का जीवन साहस, बलिदान और उपेक्षा की त्रासदी से भरा हुआ है।
बम धमाके से लेकर उम्रकैद तक
ऐतिहासिक दिन - 8 अप्रैल 1929
जब दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने बम फेंके, तब उनका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार को यह संदेश देना था कि भारत के युवा अब चुप नहीं बैठेंगे। बम ‘साउंड बॉम्ब’ थे, और दोनों क्रांतिकारियों ने खुद गिरफ्तारी दी।
इस घटना के बाद उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई और अंडमान के कुख्यात सेल्युलर जेल भेजा गया। वहां की अमानवीय यातनाएं उनकी सेहत को खोखला कर गईं।
आज़ादी के बाद की उपेक्षा
आज़ादी के बाद क्या मिला?
स्वतंत्रता के बाद, जब देश आज़ाद हुआ तो बटुकेश्वर दत्त जैसे स्वतंत्रता सेनानी को भुला दिया गया। न कोई सरकारी सम्मान, न कोई पेंशन। कई बार वह बीमार पड़े, मगर इलाज के पैसे तक नहीं थे।
दिल्ली के एम्स अस्पताल में जब वे अंतिम समय में भर्ती हुए, तो उनके पास इलाज का खर्चा तक नहीं था। 20 जुलाई 1965 को उनका देहांत हो गया, और तब जाकर सरकार ने उनका अंतिम संस्कार शहीद भगत सिंह की समाधि के पास करवाया।
विशेषज्ञों की राय और प्रमाण
इतिहासकार डॉ. बिपिन चंद्र के अनुसार, “बटुकेश्वर दत्त का नाम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि वे प्रचार से दूर रहे। वे भगत सिंह जैसे नायक के साथ थे, लेकिन उनके कार्यों का राजनीतिक लाभ किसी ने नहीं उठाया।”
अशोक कुमार, एक स्वतंत्रता संग्राम शोधकर्ता लिखते हैं, “भारत सरकार की विफलता रही है कि उन्होंने इस क्रांतिकारी के योगदान को ना कभी किताबों में शामिल किया और ना ही युवाओं तक पहुँचाया।”
Supporting Evidence:
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सेल्युलर जेल के दस्तावेज़ बताते हैं कि बटुकेश्वर दत्त 1930-1938 तक जेल में रहे।
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1964 में, उन्होंने खुद पटना में प्रेस को बताया था कि उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिल रही।
(Source: The Hindu Archives)
समाज और सरकार से सुझाव
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शिक्षा में समावेश: इतिहास की किताबों में बटुकेश्वर दत्त की कहानी को शामिल किया जाए ताकि युवा पीढ़ी अपने असली नायकों को जान सके।
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सरकारी सम्मान: मरणोपरांत भारत रत्न या अन्य राष्ट्र सम्मान देकर उनके योगदान को मान्यता दी जानी चाहिए।
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डॉक्यूमेंट्री और फिल्में: उनकी जीवनी पर आधारित डॉक्यूमेंट्री या फिल्में बनाई जाएं, जिससे जनमानस तक उनकी कहानी पहुंचे।
क्यों जरूरी है उन्हें याद रखना?
आज जब हम अपने स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति के गीत गाते हैं, तो हमें उन नायकों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपना सब कुछ देश को समर्पित कर दिया। बटुकेश्वर दत्त सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भारत की आत्मा हैं, जिन्हें इतिहास ने अनजाने में अनदेखा कर दिया।
श्री सरदारी लाल धीमान: सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंक प्रबंधक, निवेश सलाहकार, महासचिव – वर्दान वेलफेयर सोसाइटी, पंचकूला-एक परोपकारी संस्था जो पिछले 7 वर्षों से लोगों की सेवा कर रही है ।
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