Little Sparrow in My Garden: A True Nature Tale

 

Little brown sparrow in garden sitting peacefully on fence near flowers and green leaves

"छोटी चिरैया" मेरे घर का सबसे प्रिय स्थल है—एक छोटा सा बगीचा जिसे मैंने वर्ष 2002 से अपने हाथों से संवारा है। बगीचे के द्वार पर लगे दो पाम-वृक्ष अब 16 वर्ष के हो चुके हैं। वे ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे दो जवान, चुस्त-दुरुस्त सिपाही मेरे घर की रक्षा कर रहे हों।

इस छोटी सी बगिया में इतने पेड़-पौधे हैं कि लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। फलों में अमरूद, करौंदा, लीची, चीकू, कटहल, आम, नाशपाती और संतरे के पेड़ हैं, तो पाँच तरह की बेलें भी हैं जो वर्षभर कोई न कोई फूल प्रदान करती रहती हैं। सैकड़ों गमले हैं, और हर एक को मैंने अनेकों बार छूकर महसूस किया है।

कटहल और नाशपाती इतने फल देते हैं कि पूरे मोहल्ले को खिलाने में कोई परेशानी नहीं होती। आम भी खूब फलता है, और करौंदे का आचार बनाकर श्रीमती जी न जाने कितने मित्रों और रिश्तेदारों को लाभान्वित कर चुकी हैं। कटहल और अमरूद के वृक्षों को बाहों में लेकर ऐसा महसूस होता है जैसे मैं अपने किसी आत्मीय मित्र का आलिंगन कर रहा हूँ।

मेरी मित्र गिलहरियाँ और छोटी चिरैया

मेरी लगभग हर शाम यहीं गुजरती है। मैं छोटी-छोटी चिड़ियों और गिलहरियों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ। गिलहरियाँ मेरी मित्र हैं। उन्होंने अपने घोंसले मेरे द्वारा पौधों को बाँधने वाली सुतली से बनाए हैं। मैं बाँधता हूँ, वे चुरा ले जाती हैं। मैं फिर बाँधता हूँ, वे फिर चुरा ले जाती हैं। जब वे चुराना बंद कर देती हैं, तो मैं समझ जाता हूँ कि उनका घोंसला बन चुका है। कुछ ही दिनों में उनके छोटे-छोटे बच्चे नज़र आने लगते हैं।

एक छोटी चिड़िया, जो मुश्किल से 12 इंच लंबी होती है, गहरे मोरपंखी रंग की होती है और मेरे बगीचे में घोंसला बनाती है। उसका घोंसला छोटा, बहुत प्यारा और आरामदायक होता है। मेरी जानकारी के अनुसार इस चिड़िया की जीवन अवधि केवल एक वर्ष होती है। फिर भी वह इतनी खुश, आशावादी और जीवन्त होती है कि उसकी चहचहाहट से ही जीवन में प्रसन्नता आ जाती है।

अपने घोंसले में वह पहले दो छोटे-छोटे अंडे देती है। आश्चर्य की बात है कि पिछले 15 वर्षों में मैंने इस चिड़िया के दो से अधिक अंडे कभी नहीं देखे। अंडों का आकार पिस्ते के बराबर होता है। जब बच्चे बाहर निकलते हैं, तो वे लगभग आधा इंच के होते हैं—बड़े चुस्त और फुर्तीले।

प्रकृति के कठोर नियम

जब इस बार उसके बच्चे हो गए, तो मैं और मेरा सहयोगी जैसे ही घोंसले के नज़दीक जाते, वे छोटी सी चोंच बाहर निकालकर अपनी प्यारी-प्यारी चंचल आँखों से हमें देखने लगते। कुछ ही दिनों में, जब मैंने हथेली पर रोटी का चूरा लेकर घोंसले के सामने फैलाई, तो वे फटाफट आकर रोटी खाने लगे। मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। परंतु मेरी खुशी क्षणिक थी, इसका अंदाज़ा मुझे नहीं था।

प्रकृति मनुष्य की न मित्र है, न शत्रु—वह पूर्णतः निरपेक्ष है। उसके साथ रहकर मनुष्य को ही आत्मसमर्पण करना पड़ता है, क्योंकि प्रकृति के सिद्धांत कठोर, हृदयहीन और अपरिवर्तनीय होते हैं। मनुष्य का मस्तिष्क किसी भी सिद्धांत की अपरिवर्तनीयता को नहीं मानता। वह किसी भी सत्ता को अपने अनुसार बदलना चाहता है, जबकि प्रकृति में यह संभव नहीं।

प्रकृति से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। कोई भी वृक्ष अपने सूखे, पीले, मृतप्रायः पत्तों को स्वयं नीचे नहीं गिराता। वह तब तक उन्हें पकड़े रहता है जब तक हवा का कोई निर्मम झोंका आकर उन्हें अलग नहीं कर देता। यही सिद्धांत हमारे रिश्तों और आत्मीय संबंधों पर भी लागू होता है। मैं अपने बगीचे में बैठकर यह नियम अपनाता हूँ—किसी भी पेड़ या पौधे का सूखा पत्ता जब तक स्वयं न गिरे, तब तक उसे अलग मत करो।

अंतिम क्षण और मनुष्य का विवेक

परंतु प्रकृति का दूसरा नियम—नग्न हिंसा और पाशविक शक्ति का विजयघोष—मनुष्य के लिए नहीं है। बड़े पशु छोटे पशु को खा जाते हैं, बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है, बड़ी चिड़िया छोटी चिड़िया को जीने नहीं देती। इसलिए मनुष्य ने सृष्टि के आरंभ से ही अपने जीवन जीने के लिए कानून बनाए हैं। उसने कमज़ोर से कमज़ोर इंसान को भी जीने का हक दिया है।

एक शाम, जब मैं हथेली पर रोटी का चूरा लेकर छोटी मोरपंखी चिड़िया के घोंसले के सामने गया, तो देखा कि घोंसला लॉन में पड़ा था। वहीं छोटे-छोटे दो परिंदों के केवल पंख बिखरे थे। उनका शरीर किसी बड़े पक्षी की क्षुब्धा का शिकार बन चुका था।

मैं और मेरा सहयोगी, आँखों में आँसू लिए सोच रहे थे—क्या एक वर्ष की जीवन अवधि भी कोई बड़ी मांग थी उस छोटी चिरैया की? परंतु साथ ही, मैं गर्व भी कर रहा था—मनुष्यता और मानवीय मस्तिष्क पर।

साभार:

यह ब्लॉग पोस्ट श्री सुरेंद्र कुमार जाटव जी द्वारा लिखी गई है। वे भारतीय सिविल सेवा में IRTS अधिकारी रहे हैं और रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के जज पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। सामाजिक कुरीतियों के प्रखर आलोचक, दो पुस्तकों के लेखक और सामाजिक असमानता के खिलाफ आंदोलनों में सक्रिय योगदानकर्ता हैं। उनके विचार आपको कैसे लगे? कृपया अपने कमेंट्स में साझा करें!

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