Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 29 of 33

 

Krishna with peacock feather teaching Gita to Arjuna on divine chariot at Kurukshetra with sunrise and Sanskrit verses


अहंकार का विनाश और आत्मसमर्पण (गीता दर्शन)

"गीता में अहंकार का विनाश और आत्मसमर्पण: आत्मा के उद्धार की कुंजी"
"भगवद्गीता सिखाती है कि मोक्ष का मार्ग आत्मसमर्पण और अहंकार के विनाश से होकर गुजरता है। जानिए गीता, आर्य समाज और तपोभूमि के दृष्टिकोण से इसका गूढ़ अर्थ।"

🌿 भूमिका

आज का मानव जितना शिक्षित हुआ है, उतना ही वह अहंकार से ग्रसित होता जा रहा है—
"मैं जानता हूँ", "मैं श्रेष्ठ हूँ", "मेरे बिना कुछ नहीं" – ये भाव ही हैं जो उसे सत्य से दूर कर देते हैं।

भगवद्गीता, आर्य समाज, और तपोभूमि सभी यह मानते हैं कि —
👉 "अहंकार का विनाश ही आत्मज्ञान का प्रारंभ है।"

🧠 गीता में अहंकार का स्वरूप

"अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः…" (गीता 16.18)
"अहंकारी, बल प्रदर्शन करने वाले, घमंडी लोग अधोगति को प्राप्त होते हैं।"

गीता के अनुसार अहंकार:

  • आत्मा के वास्तविक स्वरूप से विचलन है

  • व्यक्ति को कर्तापन (मैं करता हूँ) की भूल में फँसाता है

  • ज्ञान और भक्ति दोनों में बाधा बनता है

🌊 आत्मसमर्पण क्या है?

"सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज…" (गीता 18.66)
"सभी कर्तव्यों को छोड़कर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सब पापों से मुक्त कर दूँगा।"

आत्मसमर्पण =

  • कर्म का फल ईश्वर को अर्पित करना

  • अपने अहं को मिटाकर ब्रह्म चेतना में विलीन होना

  • परिस्थिति में समता और मन में श्रद्धा रखना

🔥 आर्य समाज की दृष्टि से अहंकार और समर्पण

महर्षि दयानंद का दृष्टिकोण:

  • अहंकार = "मैं ही सबकुछ हूँ" की भ्रांति

  • आत्मसमर्पण = ईश्वर के नियमों के प्रति पूर्ण समर्पण

  • आर्य समाज कृत्रिम चमत्कारों और व्यक्तिगत पूजा को त्यागकर ईश्वरीय नियमों में श्रद्धा को प्राथमिकता देता है।

👉 "जो सत्य के आगे झुकता है, वही आत्मा की स्वतंत्रता प्राप्त करता है।"

🧘 तपोभूमि दर्शन: तप से तपा हुआ समर्पण

तपोभूमि के अनुसार आत्मसमर्पण:

  1. अहं को 'तप' में गलाना

  2. प्रेम, सेवा, ध्यान और आत्मविवेक से स्वयं को रिक्त करना

  3. "मैं" के स्थान पर "तू ही तू" की अनुभूति-

"जिस दिन साधक कहता है – मैं कुछ नहीं, उसी दिन ईश्वर कहता है – तू सबकुछ है।"

⚖️ अहंकार बनाम आत्मसमर्पण

अहंकार आत्मसमर्पण
"मैं करता हूँ" "ईश्वर ही करता है"
भय, क्रोध, और द्वेष से युक्त शांति, श्रद्धा और प्रेम से युक्त
ज्ञान का अटकाव ज्ञान का उदय
अधोगति का कारण मोक्ष का मार्ग

📚 गीता में अर्जुन का आत्मसमर्पण

गौर कीजिए गीता के पहले अध्याय में अर्जुन युद्ध छोड़ना चाहता है – भावुक, भ्रमित और अहंयुक्त।

परंतु...

"कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः…" (गीता 2.7)
"अब मैं आपका शिष्य हूँ, मुझे निर्देश दीजिए।"

👉 यहीं से अहंकार का विनाश और ज्ञान का प्रारंभ होता है।

🧬 मनोवैज्ञानिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • अहंकार = Ego-based reactions → चिंता, आक्रोश, और तनाव

  • आत्मसमर्पण = Flow state → Acceptance, mental peace, clarity

  • मस्तिष्क में Serotonin और Dopamine संतुलन में आते हैं जब व्यक्ति छोड़ना और स्वीकार करना सीखता है।


"जहाँ 'मैं' समाप्त होता है, वहीं से आत्मा का मार्ग शुरू होता है – गीता का सच्चा संदेश।"
"When ego ends, the journey of the soul begins – that's the true message of the Geeta."

❓FAQs

Q1: क्या आत्मसमर्पण का अर्थ है निष्क्रिय हो जाना?
उत्तर: नहीं। गीता में आत्मसमर्पण का अर्थ है – निष्काम कर्म करते हुए परिणाम की चिंता छोड़ देना।

Q2: अहंकार क्यों जन्म लेता है?
उत्तर: अज्ञान, सफलता का मद, और शरीर को आत्मा मानने की भूल से।

📚 निष्कर्ष

  • अहंकार – आत्मा और परमात्मा के बीच की दीवार है

  • आत्मसमर्पण – उस दीवार को गिराने का औज़ार है

  • गीता कहती है – "कर्तापन का मोह छोड़ो, ईश्वर के हाथों में स्वयं को सौंपो – यही मुक्ति है।"

👉 जब हम कहते हैं, “मैं कुछ नहीं”, तभी ईश्वर कहता है, “तू मेरा है।”

📚 Disclaimer:

यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।

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