Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 21 of 33


Krishna with peacock feather teaching Gita to Arjuna on divine chariot at Kurukshetra with sunrise and Sanskrit verses


धर्म – रूढ़ि नहीं, कर्तव्य का नाम (गीता के आलोक में)

"गीता में धर्म का अर्थ: परंपरा नहीं, कर्तव्य है असली धर्म"
"क्या धर्म केवल पूजा-पाठ और परंपराओं का नाम है? जानिए गीता और आर्य समाज के अनुसार धर्म का असली अर्थ – जीवन का कर्तव्य और आत्मा की उन्नति।"

🪔 भूमिका

आज धर्म शब्द सुनते ही दिमाग में आता है – जात-पात, कर्मकांड, मंदिर, व्रत, पूजा आदि।
लेकिन भगवद्गीता कहती है – “धर्म कोई परंपरा नहीं, बल्कि कर्तव्य है।”
आर्य समाज का यही मूल संदेश है –

“धर्म = कर्तव्य + सत्य आचरण”

📜 गीता में धर्म की परिभाषा

श्लोक – गीता 2.31:

“स्वधर्मं अपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।"
अर्थ: अपने स्वधर्म (कर्तव्य) को देखकर विचलित मत हो।

👉 यहां “धर्म” का अर्थ पूजा-पद्धति या सम्प्रदाय नहीं, बल्कि कर्तव्य है।

🔎 धर्म और रूढ़ियाँ – अंतर क्या है?

विषय रूढ़िगत धर्म गीता और आर्य समाज का धर्म
आधार परंपरा, आडंबर, पंथ सत्य, कर्तव्य और न्याय
उद्देश्य सामाजिक पहचान, स्वर्ग की कामना आत्मा की उन्नति, समाज सेवा
नियम दिखावे वाले कर्मकांड विवेकयुक्त व्यवहार और निष्काम सेवा
अधिकार जाति या जन्म आधारित कर्म और आचरण आधारित

🧭 स्वधर्म क्या है?

स्वधर्म = अपने गुण, स्वभाव और स्थिति के अनुसार किया गया कर्तव्य

अर्जुन का उदाहरण:

  • उसका धर्म युद्ध था, न कि सन्यास।

  • गीता उसे कहती है – “धर्म युद्ध से भागना अधर्म है।”

आज का संदर्भ:

  • विद्यार्थी का धर्म – अध्ययन

  • नागरिक का धर्म – ईमानदारी

  • माता-पिता का धर्म – पालन-पोषण

  • नेता का धर्म – सेवा, न सत्ता

🛡️ गीता का ‘धर्म’ क्यों प्रासंगिक है?

  1. आत्मिक उन्नति के लिए:

    • धर्म व्यक्ति को भीतर से सुधारता है।

  2. राष्ट्रनिर्माण के लिए:

    • जब हर नागरिक अपने कर्तव्य को धर्म माने, तभी भारत “आर्य” बनता है।

  3. अंधविश्वास से मुक्ति:

    • कर्मकांड और जातिवाद से ऊपर उठकर मानव धर्म अपनाने की प्रेरणा।

✨ आर्य समाज की पुष्टि:

  • “धर्म वह है जो सबको सुख दे, किसी का शोषण न करे।”

  • सत्य, अंहिंसा, न्याय, दया, शुद्ध आचरण – यही सच्चा धर्म है।

🔬 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • कर्तव्य आधारित जीवन = संतुलित जीवन

  • जब हम अपनी भूमिका (role) निभाते हैं, तो मानसिक तनाव कम होता है,
    और सामाजिक ताना-बाना मज़बूत होता है।

💡 "कर्तव्य निभाने वाला व्यक्ति – सबसे बड़ा धर्मात्मा होता है।"

🧘‍♂️ निष्कर्ष:

  • धर्म का अर्थ पूजा, जाति, कर्मकांड नहीं है।

  • धर्म = कर्तव्य + नैतिकता + सत्य आचरण

  • गीता हमें अपने धर्म (कर्तव्य) के प्रति जागरूक बनाती है।


"धर्म मंदिर में नहीं, तुम्हारे कर्म में है। गीता कहती है – सच्चा धर्म वही है जो कर्तव्य से जन्म ले।"
"True religion isn’t ritual, it’s responsibility. Geeta defines Dharma as your duty in action."

❓FAQs:

Q1: क्या जाति के आधार पर धर्म तय होता है?
उत्तर: नहीं। गीता कहती है – धर्म कर्म से तय होता है, जन्म से नहीं।

Q2: क्या पूजा-पाठ धर्म का हिस्सा नहीं?
उत्तर: वे साधन हो सकते हैं, पर यदि उनसे जीवन में कर्तव्य, करुणा, और सेवा न बढ़े – तो वे धर्म नहीं, केवल परंपरा हैं।

📚 Disclaimer:

यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।

कल नया अध्याय.....

अगर आप निवेश के लिए सही योजना बनाना चाहते हैं, तो SIP और SWP कैलकुलेटर 2025 जरूर देखें। यह टूल आपके निवेश लक्ष्यों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।

Click here to Win Rewards!




Post a Comment

Previous Post Next Post