Shrimad Bhagwat Geeta Saar: श्रीमद्भगवद्गीता सार - Part 15 of 33

Krishna with peacock feather teaching Gita to Arjuna on divine chariot at Kurukshetra with sunrise and Sanskrit verses

 

योग – आत्मा की ईश्वर से एकत्व की साधना

"योग का सच्चा अर्थ: आत्मा और परमात्मा का मिलन – आर्य समाज की दृष्टि से"
"क्या योग केवल आसन है? जानिए वेद, गीता और आर्य समाज के अनुसार योग का गूढ़ अर्थ – आत्मा का परमात्मा से एकत्व, जीवन की दिव्यता की ओर यात्रा।"

🔍 भूमिका

आज “योग” शब्द सुनते ही हमारे मन में आसन और व्यायाम की छवि उभरती है।
लेकिन गीता, वेद, और आर्य समाज के अनुसार योग केवल शरीर की क्रिया नहीं,
बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच चेतन मिलन है।

“योग वह साधना है, जिससे आत्मा ईश्वर से जुड़ती है – पूर्ण चेतना के साथ।”

📜 गीता में योग की परिभाषा

श्रीकृष्ण कहते हैं:

“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।”
(हे अर्जुन! योग में स्थित होकर कर्म कर – आसक्ति को त्यागकर।)

निष्कर्ष:

  • योग = ईश्वर से जोड़ना

  • योग = कर्म में स्थिरता

  • योग = आत्मा को परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर करना

🕉️ आर्य समाज का दृष्टिकोण

स्वामी दयानंद सरस्वती कहते हैं:

“योग आत्मा की वह दशा है जिसमें वह एकाग्र होकर ईश्वर के निकट पहुँचती है।”

तपोभूमि की साधना:

  • योग का अर्थ है – आत्मा का संयम, शुद्धि, और ईश्वर से मिलन

  • यह न केवल मानसिक या शारीरिक है, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा है

  • इसमें संयम, सत्य, सेवा, अध्ययन, और ध्यान की साधना सम्मिलित होती है

🔥 योग के प्रकार (आर्य दृष्टिकोण से)

  1. ज्ञानयोग: आत्मा का स्वरूप, ईश्वर का ज्ञान और जीवन का सत्य समझना

  2. कर्मयोग: निःस्वार्थ भाव से कर्तव्य पालन

  3. भक्तियोग: परमात्मा के प्रति आत्मीय श्रद्धा और प्रेम

  4. राजयोग: आत्मा को इंद्रियों, मन और अहंकार से ऊपर उठाकर ध्यान में स्थिर करना

💡 “योग का लक्ष्य शरीर नहीं, चेतना का विस्तार है।”

🧘 योग केवल व्यायाम नहीं

  • आधुनिक योग = आसन, प्राणायाम, मेडिटेशन तक सीमित

  • वैदिक योग = आत्मा को निर्मल बनाकर ईश्वर के सान्निध्य में लाना

  • आर्य समाज योग को जोड़ता है सत्य, तप, संयम, सेवा और ध्यान से

🌱 योग का परिणाम

  • आत्मा में आंतरिक शांति, दृढ़ता, और ईश्वरीय चेतना की अनुभूति

  • जीवन में निर्णय स्पष्ट, कर्म शुभ, और मन स्थिर होता है

  • आत्मा मुक्त होकर ईश्वर से जुड़ती है – यही योग की सिद्धि है

“योग से आत्मा को अपनी दिव्यता का बोध होता है।”


"योग आसनों से नहीं, आत्मा को ईश्वर से जोड़ने की साधना से होता है।"
"Yoga is not just posture, it’s the soul’s journey to divine connection."

🧘‍♂️ FAQs (प्रश्नोत्तर)

Q1: क्या बिना आसन किए भी योग किया जा सकता है?
उत्तर: हां। असली योग आत्मा की स्थिति है – मन, वाणी और कर्म की शुद्धता से भी योग होता है।

Q2: क्या योग से मुक्ति संभव है?
उत्तर: योग मुक्ति का मार्ग है। जब आत्मा योग द्वारा ईश्वर से जुड़ती है, तो वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो सकती है।

📚 Disclaimer:

यह लेख विभिन्न स्रोतों व आर्य समाज साहित्य के अध्ययन पर आधारित है। लेखक न तो धार्मिक गुरु है, न गीता काअंतिम ज्ञाता – उद्देश्य केवल जागरूकता और चिंतन को बढ़ावा देना है।

कल नया अध्याय.....

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